काठमाण्डु मीडिया को पढ़ो तो लगता है नीतिश को मधेसको बारे में न कुछ मालुम है न मतलब है।
लेकिन मधेसी मीडिया को पढ़ो तो मालुम पड़ता है कि नीतिश जितना बिहार समझते हैं उतना ही मधेस और नेपाल समझते हैं। सबसे जो सटिक प्रश्न है वो उन्होंने किया। कि जो काँग्रेस और कम्निष्ट पार्टी में मधेसी हैं उन्होंने इस संविधान पर हस्ताक्षर क्यों किया? जाहिर है उन सांसदों के मतदाता इस संविधान से तीव्र असंतुष्ट हैं।
नीतिश के दो Blind Spots
लोकतंत्र में वैसा नहीं होता है। सांसद और उसके मतदाता के बीच इतनी दुरी लोकतंत्र में संभव नहीं। ये दुरी उस बात की प्रमाण है कि नेपाल में वास्तव में लोकतंत्र है ही नहीं। चुनाव में भारी धाँधली हुवी। उसके बाद भी विजेता पार्टी ने अपना मैनिफेस्टो ही फेंक दिया। संविधान सभा में व्हिप जारी नहीं किया जा सकता। वो एक विश्वव्यापी मान्यता है। नेपाल में व्हिप जारी की गयी। जभी जयशंकर आए उस समय में संविधान सभा के पास कमसेकम ६ महिना समय बाँकी था अगर प्रक्रिया को पुरा किया जाता तो। तो उसको शार्ट सर्किट कर दिया गया। अभी भी ये लोग कह रहे हैं चलो चुनाव की ओर। यानि की फिर से जम के धाँधली करने की काबिलियत रखते हैं। इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी। ये लोकतंत्र नहीं फासिज्म है।
लेकिन मधेसी मीडिया को पढ़ो तो मालुम पड़ता है कि नीतिश जितना बिहार समझते हैं उतना ही मधेस और नेपाल समझते हैं। सबसे जो सटिक प्रश्न है वो उन्होंने किया। कि जो काँग्रेस और कम्निष्ट पार्टी में मधेसी हैं उन्होंने इस संविधान पर हस्ताक्षर क्यों किया? जाहिर है उन सांसदों के मतदाता इस संविधान से तीव्र असंतुष्ट हैं।
नीतिश के दो Blind Spots
लोकतंत्र में वैसा नहीं होता है। सांसद और उसके मतदाता के बीच इतनी दुरी लोकतंत्र में संभव नहीं। ये दुरी उस बात की प्रमाण है कि नेपाल में वास्तव में लोकतंत्र है ही नहीं। चुनाव में भारी धाँधली हुवी। उसके बाद भी विजेता पार्टी ने अपना मैनिफेस्टो ही फेंक दिया। संविधान सभा में व्हिप जारी नहीं किया जा सकता। वो एक विश्वव्यापी मान्यता है। नेपाल में व्हिप जारी की गयी। जभी जयशंकर आए उस समय में संविधान सभा के पास कमसेकम ६ महिना समय बाँकी था अगर प्रक्रिया को पुरा किया जाता तो। तो उसको शार्ट सर्किट कर दिया गया। अभी भी ये लोग कह रहे हैं चलो चुनाव की ओर। यानि की फिर से जम के धाँधली करने की काबिलियत रखते हैं। इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी। ये लोकतंत्र नहीं फासिज्म है।
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