Friday, December 25, 2015

बुश का बघदाद

MasterCard Classic
MasterCard Classic (Photo credit: Wikipedia)
बुश जब बघदाद आया तो सबसे पहले क्या काम किया कि ट्रांसफार्मर उड़ाओ, पानी टंकी उड़ाओ। सद्दाम कहीं भी छुपा हो सकता है। अजीब आदमी है। ये नहीं सोंचा लोग पानी पीते होंगे। मरुभूमि इलाका। तबतो सद्दाम ने पानी टंकी लगवायी होगी। कि पानी टंकी लगा दो नहीं तो लोग बगावत कर देंगे। प्रेस्टीज इशू है। अगर लोग बगावत कर देते हैं तो फिर ये जो इमेज है कि सद्दाम डिक्टेटर है वो तो गयी काम से। तो बुश ने उड़ा दिया। सबसे पहले। उसको कोई परवाह नहीं कि बगावत हो सकती है।

बुलडोज़र लगाने में टाइम लगता है क्या? दो चार रोज में युद्ध ख़त्म। तो फिर तुरंत उन्ही ट्रांसफार्मर और पानी टंकी के लिए अपने करीबी दोस्तों को मेगा बिलियन का बिना कम्पटीशन का कॉन्ट्रैक्ट दे दिया। देश लिबरेट कर दिया अब लगा दो ट्रांसफार्मर, लगा दो पानी टंकी। इराकी भी क्या याद करेंगे। 

राजनीति में एक पुराना नियम है: Follow The Money. अगर आपको राजनीति समझ नहीं आती और समझना हो तो ये फोर्मुला लगा दो बहुत राजनीति आपको समझ में आ जाएगी। 

कुछ हैं conspiracy theorists वेबसाइट बगैरह बना के बैठे हैं कहते हैं ९/११ बुश ने किया, it was an inside job ---- अजीब लोग हैं। बिन लादेन को इस बात का इतना बुरा लगता था वो कभी क्रेडिट लेने से नहीं चुकता था। वीडियो निकालता था कि ईद मुबारक और अंत में जाते जाते ९ दो ११ के बारें थोड़ा हिंट दे देता था। फिर से अटैक की तयारी करो या ऐसा कुछ। ताकि अगर कोई गलतफहमी हो तो दुर हो जाए। 

९/११ बुश ने नहीं किया। बिन लादेन ने किया। लेकिन जिसको हम आप और ओबामा Great Recession कहते हैं और जिसे बुश और उनके दोस्त लोग Grand Recession कहते हैं --- वो लेकिन inside job था ---- fully documented. 

अमेरिका का अपना पैसा तो था नहीं। चीन से उधार में लो और इराक में खर्चा करो। बुश ने क्रेडिट कार्ड स्वाइप कर के युद्ध किया। Paid for by MasterCard. ..... कहते हैं There are somethings money can't buy, for everything else there is MasterCard. तो बघदाद का पानी टंकी बगैरह वो MasterCard केटेगरी के थे। 

अगर आप के देश का बजेट हो १०० बिलियन और आप ३३ बिलियन युद्ध में होम दो तो क्या होगा? उसी हिसाब से अगर आप के देश का बजेट हो तीन ट्रिलियन तो? 



नेपाली में कहते हैं भ्वांग। मैथिलि में कहते हैं भुम। हिंदी में क्या कहते हैं? 

तो ये सबके सामने हो रहा था तो वाल स्ट्रीट वालो ने फोटोकॉपी मार दिया। घर गिरबी रख के लोग लोन लेते हैं। लेकिन एक ही घर पर चार बार पाँच बार लोन लो तो क्या होगा? घर बैंक का है आप का अभी हुवा भी नहीं लेकिन आप ने लोन निकाल लिया। बैंक ने वैसे ढेर सारे घरो का बनडलिंग कर दिया और किसी दूसरे बैंक को होलसेल में बेच दिया। वैसे ही दो चार राउंड हो गया। उसको कहा गया innovation ---- यानि कि हम financial instruments बना रहे हैं। सब लोग अपना मंथली पेमेंट करते रहे तब तक पता नहीं चलता। लेकिन कुछ लोग ऐसे निकले घर खरीदने के स्थिति में नहीं थे फिर भी डाउन पेमेंट कर चुके थे। पियर प्रेशर। नौकरी चली गयी। मंथली पेमेंट बंद। पैसा रहेगा तब न दिजिएगा। आप बुश हैं जो चीन से उधार लोगे। 

तो पुरा घर तास के पत्ते के घर के तरह गिर गया ----- now THAT was an inside job. वो बिन लादेन ने नहीं किया। हालांकि वो क्रेडिट लेना चाहता था। उसका था कि अमेरिका को ऐसे युद्ध में घिंचो कि वो afford ना कर सके। 

Great Recession में कितने ट्रिलियन डॉलर ध्वस्त हो गए अभी तक हिसाब हो रहा है। बहुत मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास अमेरिकी का पेंशन गायब गया। उनकी क्या होगी वो तो जब वो रिटायर होंगे तब पता चलेगा। 

अमेरिका में भी बहुत घपला है।

चिनिया कहते हैं non-interference ----- वो लेकिन कह रहे हैं युद्ध बहुत खर्चिला होता है अच्छा बिजनेस नहीं। युद्ध से अच्छा बिजनेस हैं लोगों को लोन दो, विशेष कर के उन्हें जो युद्ध करना चाहते हैं।

टेक्सास में काऊबॉय कल्चर है।




India: Holding Two Elections Every Five Years

Indian general election, 2009
Indian general election, 2009 (Photo credit: Wikipedia)
I think that would be a great idea. The entire country has only two election dates every five years. The national elections and half the state elections are held on one day. State elections for the rest of the states are held on the other day. And all local elections are also held on one of the two days.

For the state elections it would be a good idea to get half the country (by population) vote on one day, and the other half on the other day. If you put together the North-East, West Bengal, Sikkim, Bihar, and Uttar Pradesh in one basket, would that be half the country? If not add a few more adjacent states. 

Basically you get rid of the idea of mid-term elections. Parliaments do full terms. Why not? 

With the current system, you can get a decisive mandate for the Lok Sabha and still feel like you never really got a mandate. Elections are never over. There's always a major election just round the corner. Bihar is over, Uttar Pradesh is on. That is democratic chaos. 

This would also boost local bodies. You can't have a robust democracy if you don't have robust local bodies. The local bodies are the most exciting part of the democracy. The people get to actively participate. 

Because local elections can be held on either of the two days, both dates will feel like national election days. Maybe the rule should be you can't hold the state and the local election on the same day. That way states will use one date for the state level and the other for the local level election.

And the two dates should be a Sunday. 

Abhi to jo hai chaos hai.